Tuesday, April 12, 2011

भगवा आतंकवाद या कांग्रेसी साजिश


क्रिकेट वर्ल्डकप के रोमांच और अन्ना हजारे के अनशन के हंगामे में जिस एक खबर को महत्व नहीं दिया गया वो है स्वामी असीमानंद का नया बयान जिसमे उन्होंने सीबीआई पर दबाव डालकर बलपूर्वक पिछला बयान दिलवाने का आरोप लगाया था. स्वामी असीमानंद ने साफ़-साफ़ कहा है कि जिस कलीम से मिलकर उनके ह्रदय परिवर्तन की बात कही जा रही है उस कलीम से तो वे मिले भी नहीं और पूरा बयान सीबीआई अधिकारी टी आर बालाजी ने अपनी कल्पना के उड़ान भरते हुए तैयार किया है.
समग्रता में देखें तो मामला बेहद गंभीर साजिश का है. राहुल गाँधी का अमेरिकी राजदूत से यह कहना कि हिन्दू कट्टरपंथ, इस्लामी आतंकवाद से अधिक खतरनाक है, कांग्रेसी मानसिकता को उजागर करती है. दिग्विजय सिंह का आजमगढ़ में बाटला हाउस एनकाउंटर पर सवाल उठाना, राहुल गाँधी का सिमी और संघ को एक बताना और ठीक इसके बाद इन्द्रेश कुमार पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहने का आरोप लगाना और असीमानंद का काल्पनिक बयान अपने विश्वस्त पत्रिका के जरिये लीक करना एक साजिश नहीं तो और क्या है?
जब तक जांच जारी है और न्यायालय से कोई निर्णय नहीं आ जाता तब तक यह कहना कि कुछ हिन्दू युवक आतंकवादी घटनाओं में शामिल थे अथवा नहीं थे, नादानी होगी. संभव है, जिस तरह से पिछले दशक में मंदिरों पर आतंकवादी हमले हुए और लगभग कोई कार्यवाई नहीं हुई अथवा जिस तरह से तमाम राजनीतिक दल मुस्लिम तुष्टिकरण में लगी हुई हैं, ऐसे में कुछ अधीर युवकों ने अतिरेक में आकार इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया हो. लेकिन इस आधार पर यह मान लेना तो हद दर्जे की मूर्खता होगी कि हिन्दू समाज का एक व्यवस्थित आतंकवादी नेटवर्क है जिसे भगवा आतंकवाद का नाम देना चाहिए. यह तो और भी अधिक मूर्खतापूर्ण और हास्यास्पद सोच होगी कि इन घटनाओं के पीछे संघ का हाथ है. लेकिन मूर्खतापूर्ण हरकतों के लिए प्रसिद्ध मनमोहननित भारत सरकार ऐसा न केवल सोच सकती है वरण प्रमाणित करने के लिए झूठी खबरे भी प्लांट करा सकती है.
यद्यपि किसी भी तरह के आतंकवाद को उचित नहीं ठहराया जा सकता और इसको नियंत्रित करना और दोषियों को दण्डित करना अत्यंत आवश्यक है. लेकिन आतंकवाद पर राजनीति करने वाले बेहद घृणित कम कर रहे हैं और इस पर बौद्धिक प्रदुषण फैला कर उसको संरक्षण देने का कम कर रहे हैं. यहाँ महाराष्ट्र एटीएस का यह निष्कर्ष महत्वपूर्ण है कि कर्नल पुरोहित और स्वामी दयानंद (जो आतंकवादी घटनाओं के आरोपी हैं) संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत के हत्या की साजिश रच रहे थे. लेकिन कांग्रेस की केंद्र सरकार जांच को इस दिशा में ले हीं नहीं जाना चाहती है. यह तो बेहद भद्दा मजाक है कि जो संघ को हीं समाप्त करने की साजिश कर रहे थे उन्हें संघ से जोड़ दिया जाये. यानि चित भी मेरा, और पट भी. गृह सचिव जी. के. पिल्लई का यह बयान कि इस तरह के घटनाओं में अधिकतम 20  लोगों के शामिल होने की सम्भावना है और उनकी तलाश चल रही है, सब कुछ साफ़ कर देता है.
60 लाख स्वयंसेवक, सेवानिवृत सैन्य अधिकारीयों से लेकर वैज्ञानिकों तक से सुसज्जित, मानव संसाधन के दृष्टि से विश्व के सबसे बड़े संगठन को यदि आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देना हो तो परिदृश्य कितना भीषण होगा यह बताने के लिए मेरे पास कोई उदहारण नहीं है. संघ उनमे से नहीं जो तिलचट्टे मारने के लिए घर में आग लगा लेती है. यद्यपि संघ ने हिंदुओं की उर्जा को रचनात्मक कार्यों में लगाकर उनके किसी विध्वंशक कार्य में संलिप्तता की संभावनाओं को भी समाप्त हीं किया है. यह बात सरकार को अच्छी तरह पता है लेकिन उसे उस अजन्मे से अल्पसंख्यक समाज को डराना है जो न जन्मा है और न हीं जिसके जन्म लेने की कोई सम्भावना है. 
भ्रष्टाचार से लेकर महंगाई तक, काले धन से लेकर उद्योगपतियों की दलाली तक और सांसदों की खरीद से लेकर वोटर की खरीद तक कांग्रेस सरकार, प्रत्येक मामले में घिरी हुई है. उसे अच्छी तरह पता है कि यदि परिस्थितयां ऐसी हीं रही तो अगले आम चुनाव में कांग्रेस के सीटों की संख्या तीन अंको में भी नहीं पहुँच सकेगी. इसीलिए उसने भगवा आतंकवाद का कार्ड खेला है. इससे एक तो अल्पसंख्यक समुदाय का थोक वोट तय हो जायेगा दूसरे प्रबुद्ध हिन्दू समाज भी सरकार की सभी नाकामी भूल कर शांति और व्यवस्था के नाम पर उसे वोट देगा. कांग्रेस सत्ता के लिए कुछ भी कर सकती है यह प्रमाणित तथ्य है.
जब भारत सरकार हीं इस घृणित खेल में शामिल है तो चमचे क्यों पीछे रहें. एक बानगी देखिये. राष्ट्रीय सहारा (उर्दू दैनिक) के संपादक एजाज बर्नी ने एक पुस्तक लिखी है – ‘आरएसएस की साजिश -26/11’. देशद्रोह के सीमाओं को भी पार कर, इस पुस्तक में 26/11 के दुखद घटना के लिए संघ को जिम्मेवार बताया गया है. इस पुस्तक का विमोचन धर्मनिरपेक्षता के ध्वजवाहक दिग्विजय सिंह ने किया और कार्यक्रम में राज्यसभा के उपसभापति श्री के. रहमान खान भी उपस्थित थे.  राष्ट्र के संप्रभुता को झकझोर देने वाली इस घटना में सेना तथा पुलिस के कई अधिकारी शहीद हुए थे. पाकिस्तानी नागरिक कसाब जो इस साजिश का हिस्सा था, अभी जेल में बन्द है. अब यदि संघ ने इस घटना को अंजाम दिया है तो फिर कसाब कौन है और भारत सरकार पाकिस्तान में किसे सजा देने की मांग कर रही है? क्या यह देशद्रोह का मामला नहीं है? क्या राज्यसभा के उपसभापति के जिम्मेवार पड़ पर बैठे व्यक्ति को वहाँ होना चाहिए था? याद रखिये, 26/11 के बारे में पाकिस्तान में भी वही मत है जो बर्नी ने अपनी पुस्तक में लिखा है. ऐसे में क्या दिग्विजय सिंह पाकिस्तान के हीं मत को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं. क्या अब भी कोई संदेह रह जाता है कि वोट बैंक के लिए कांग्रेस ने देश की सुरक्षा और संप्रभुता को दाँव पर लगा दिया है?
ये सवाल सरकार से पूछे जाने चाहिए लेकिन कौन पूछेगा? मुख्यधारा की मीडिया तो ने तो अपने आँख, कान और दिमाग सब कुछ बन्द कर लिया है. एक राष्ट्रीय समाचार पत्र के मुख्यपृष्ठ पर  साध्वी प्रज्ञा के बारे में खबर छपी थी जिसमे लिखा था कि साध्वी प्रज्ञा आरएसएस की सदस्य हैं. अब इस पर हसें या सर पटकें यह आपका निर्णय. उल्लेखनीय है कि कोई महिला संघ की सदस्य नहीं हो सकती है और यह खुला तथ्य है. एक राष्ट्रीय समाचारपत्र के संपादक को यह ज्ञात नहीं हो यह मान लेना भी संभव नहीं. लेकिन यहाँ तो कांग्रेस के खाते में अधिक नंबर बटोरकर विज्ञापनों की संख्या बढ़ानी है, तथ्य की चिंता कौन करे. स्वामी असीमानंद के हीं तथाकथित स्वीकारोक्ति पर घंटे भर का विशेष शो करने वाले चैनल उनके ताजे बयान को बॉटम में हीं जगह  दिया है. तहलका के लिए जिस महिला पत्रकार ने स्वामी असीमानंद का तथाकथित बयान लीक किया, उसने एनडीटीवी के एक कार्यक्रम में भाजपा प्रवक्ता से सवाल किया कि जब साध्वी प्रज्ञा ने जांच अधिकारीयों द्वारा शारीरिक प्रतारणा की शिकायत कि तो आडवाणी जी ने संसद में यह सवाल क्यों उठाया. यानि साध्वी पर आतंकवाद के आरोप हैं  तो उनके मानवाधिकार के लिए भी बोलना अपराध बन जाता है.
कांग्रेस भगवा आतंकवाद के नाम पर आग से खेल रही है. उसे पता होना चाहिए कि सत्य सूर्य की भांति होता है उसे झूठ के कोहरे अधिक समय तक नहीं ढक सकते.

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